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उल्टा बरगद का पेड़ है संसार || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवदगीता पर (2017)

2024-01-15 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी: 18.03.2017, शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

श्रीभगवान उवाच -
ऊर्ध्वमूलमध: शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् |
छंदंसि यस्य पूर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ||1||

भावार्थ -
श्री भगवान बोले -
ऊपर परमात्मा ही जिसका मूल है
और नीचे प्रकृति जिसकी शाखाएँ हैं,
ऐसे संसार रूपी बरगद के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं,
तथा वेद जिसके पत्ते कहे गए हैं।
जो पुरुष इस संसार रूपी वृक्ष को तत्त्व से जान लेता है,
वह वेद को जानने वाला है।

अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा
गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: |
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि
कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ||2||

भावार्थ -
इस संसार वृक्ष की तीनों गुणों के द्वारा बढ़ी हुई
विषय और भोग रूप कोपलों वाली शाखाएँ
नीचे और ऊपर सर्वत्र फैली हैं
तथा केवल मनुष्य योनि ही
कर्मों के अनुसार बाँधने वाली है। ~ श्रीमद्भागवद्गीता - अध्याय १५

~ कृष्ण इस संसार को उल्टा बरगद का वृक्ष क्यों कह रहे हैं?
~ वेद इस वृक्ष के पत्ते कैसे हैं?
~ इस संसार के तीन प्रमुख गुण कौनसे हैं?

संगीत: मिलिंद दाते
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